नई दिल्ली
भारत के लड़ाकू विमान बेड़े को लेकर एक अहम जानकारी सामने आई है. इंडियन एयरफोर्स (IAF) के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि रूस के Sukhoi Su-57E फाइटर जेट में एक बड़ी खामी है. अधिकारी के मुताबिक इस विमान के इंजन पैनल काफी हद तक खुले हुए हैं. इससे इसकी स्टेल्थ (छिपने की क्षमता) पर बुरा असर पड़ता है. यह जेट पीछे से दुश्मन के रडार पर आसानी से पकड़ा जा सकता है.
घट जाती है स्टेल्थ क्षमता
IAF ने इस कमी की जानकारी रूस को भी दे दी है. अधिकारियों का कहना है कि Su-57E में इंजन की डिजाइन सोवियत दौर के Su-27 फाइटर जैसी है. इसमें इंजन के कई हिस्से खुले हैं. इसकी वजह से रडार क्रॉस सेक्शन (RCS) बढ़ जाता है. यानी दुश्मन का रडार इसे आसानी से ट्रैक कर सकता है. अन्य इक्सपर्ट का कहना है कि Su-57 का RCS फ्रंट साइड से 0.1 से 1 वर्ग मीटर के बीच है. असली स्टेल्थ फाइटर जैसे F-35 का RCS सिर्फ 0.001 वर्ग मीटर होता है.
इंफ्रारेड सिग्नेचर भी ज्यादा
इस जेट का इंफ्रारेड सिग्नेचर भी कमजोर है. इंजन के गर्म हिस्से सीधे नजर आते हैं. इससे यह किसी भी IR गाइडेड मिसाइल के लिए आसान टारगेट बन जाता है. एविएशन एक्सपर्ट्स पहले भी Su-57 की डिजाइन पर सवाल उठा चुके हैं. उनका कहना है कि इंजन ब्लेड्स पर रडार-एब्जॉर्बेंट कोटिंग ठीक से नहीं दी गई है. इसमें सिरे वाले (serrated) नोजल भी नहीं हैं. यह रडार रिफ्लेक्शन को घटाते हैं.
अमेरिका और चीन के स्टेल्थ फाइटर्स इंजन को ठंडी हवा की परत और खास कोटिंग से ढक देते हैं. रूस ने Su-57 में थ्रस्ट यानी इंजन की ताकत को ज्यादा प्राथमिकता दी है. इससे स्टेल्थ फीचर कमजोर हो गया है.
भारत कर रहा है जांच
IAF इस जेट को खरीदने के विकल्प पर विचार कर रही है. भारत 114 Su-57E जेट्स की खरीद पर करीब 20 बिलियन डॉलर के सौदे की संभावना देख रहा है. IAF ने रूस को साफ बताया है कि स्टेल्थ से जुड़ी कमियों को दूर किए बिना यह सौदा मुश्किल है. रूस ने जवाब में कहा है कि वह इंजन के पीछे वाले हिस्से में कॉम्पोजिट पैनल और हीट शील्ड्स लगाएगा. इससे इंफ्रारेड सिग्नेचर 40-50% तक घट जाएगा.
IAF ने रखा सख्त रुख
भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, रूस ने इन नए पैनल्स का परीक्षण Gromov Flight Research Institute में किया है. दावा किया गया कि इससे गर्मी तो कम होगी. रडार पर दिखने की समस्या कितनी घटेगी. यह अब तक साफ नहीं है. IAF ने साफ कहा है कि जब तक ये सुधार असली फाइट में साबित नहीं होते है. तब तक भारत Su-57E को अपनाने में जल्दबाजी नहीं करेगा.

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