औरैया
जिला कृषि रक्षा अधिकारी शैलेन्द्र कुमार वर्मा ने किसानों को रबी की फसलों में शत-प्रतिशत बीजशोधन करने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में प्रतिवर्ष फसलों को खरपतवारों, रोगों, कीटों और चूहों से 15 से 20 प्रतिशत तक नुकसान होता है। इनमें रोगों से होने वाली क्षति सबसे अधिक होती है। बीज व भूमि जनित रोगों से बचाव हेतु बीजशोधन अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि “बीज शोधन” से फसलें रोगों से सुरक्षित रहती हैं और कम लागत में अधिक पैदावार संभव होती है, जिससे किसान की आय में वृद्धि होती है। बीजशोधन न करने पर फफूंद और जीवाणु जनित रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, जो फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
अधिकारी ने बताया कि आलू की फसल में जीवाणु झुलसा और जीवाणुधारी रोग से बचाव के लिए स्ट्रेप्टोमायसीन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% की 4 ग्राम मात्रा प्रति 25 किग्रा बीज के हिसाब से 10 लीटर पानी में मिलाकर रात भर भिगोकर अगले दिन छाया में सुखाकर बोना चाहिए। वहीं गेहूं, जौ, चना, मटर, सरसों/राई और मसूर के बीजों को कार्बेन्डाजिम (50% डब्लूपी) 2 ग्राम या थीरम (75% डब्लूएस) 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधन करना उपयोगी है।
जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि किसान ट्राइकोडर्मा का प्रयोग 4 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से कर सकते हैं। भूमि जनित रोगों से बचाव के लिए 2.5 किग्रा ट्राइकोडर्मा (2% डब्लूपी) तथा ब्यूबैरिया बेसियाना (1% डब्लूपी) को 65–70 किग्रा गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर 10–12 दिन छाया में रखकर अंतिम जुताई के समय खेत में प्रयोग करें। उन्होंने यह भी बताया कि विभिन्न कृषि रक्षा रसायन विकासखंड स्तर की कृषि रक्षा इकाइयों पर 50 से 75 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध हैं।
किसान अपनी फसलों में कीट या रोग संबंधी समस्या का समाधान पाने के लिए फोटो सहित अपना नाम, ग्राम, विकासखंड एवं पंजीकरण नंबर लिखते हुए मोबाइल नंबर 9452247111 या 9452257111 पर एसएमएस या व्हाट्सएप भेज सकते हैं। विभाग द्वारा 48 घंटे के भीतर समाधान उपलब्ध कराया जाएगा।

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